तिजारत का माल और उसकी जकात किस तरह अदा करें

सहानुभूति संवाददाता रिजवान अशरफ
पीलीभीत मई, तिजारत बिजनेस को कहा जाता है और जकात एक तरह का वह टैक्स है जिस पर मजहबी पाबन्दी लगा कर अपनी पूंजी से एक तय रकम को निकाल कर उन गरीबों की मदद की जाती है जो किसी के आगे हाथ नहीं फैला सकते।
इस्लाम मजहब में जकात को अमीर लोगो पर सख्ती के साथ फ़र्ज़ (जरूरी)किया गया  है।
जिसके न करने वाले को गुनहगार बताया गया है इस पाबंदी का लवो लुआब यह है कि गरीबों की मदद होती रहे।
 माले तिजारत वह माल है जिसे बेचने की नियत से खरीदा गया हो उसे माल तिजारत कहते हैं जैसे किसी ने बाइक इस नियत से खरीदी कि इसे अच्छे दम में फायदे से बेचूंगा और नफा कमाउंगा और अगर अपने इस्तेमाल के लिए खरीदी तो यह माल तिजारत हरगिज़ नहीं माल ए तिजारत पर रकात फर्ज है।माल तिजारत की जकात किस तरह निकाली जाए इसका सबसे आसान तरीका वह यह है कि तमाम माल की कीमत साल के खत्म की वैल्यू के हिसाब से जोड़कर जो रकम बने हैं उसमें से ढाई परसेंट निकाल दें जैसे आपके पास मौजूदा माल की रकम, कैश ,रोकड़, रुपए या वह रकम जो  किसी को उधार दी गई हो और उधार दिए हुए सामान की रकम अब इन चारों रकमो को जोड़ लें।जो भी रकम बनती हो इस रकम को उधार लिए हुए सामान की रकम और उधार लिए हुए रुपए की रकम दोनों को जोड़ें, जो भी बनती हो उसको उस टोटल में से घटाएं और अब जो रकम बचेगी  उस रकम का ढाई परसेंट जकात निकाल दें इसी तरह से थोक वाले थोक रेट के हिसाब से और फुटकर वाले फुटकर के हिसाब से निकालें।
माल की कुछ किस्में मसलन कारोबार के लिए दुकान खरीदी उस पर ज़कात नहीं दुकान,मकान और जागीरो में जकात नहीं दुकान मकान खरीदने के लिए अगर एडवांस दिया है तो उस एडवांस की रकम की जकात देनी होगी किराए पर दिए हुए  मकान चाहें  वह जितनी भी कीमत के हों उन पर जाकात नहीं। हां उनके किराए से हुई आमदनी पर जकात देनी होगी। किराए पर चलने वाली बसें गाड़ियां और दीगर चल संपत्ति पर जकात वाजिब नहीं। उनकी आमदनी पर जकात वाजिब होगी।
 जिसके पास टीवी कंप्यूटर फ्रिज वाशिंग मशीन ओवन आदि हो तो उस माल पर जकात वाजिब नहीं। मकान की सजावट की चीजें जैसे तांबे चीनी के बर्तन वगैरह पर भी जकात नहीं।इसके अलावा बयाना जिसे टोकन मनी कहते हैं किसी चीज को खरीदने बेचने के वक़्त दिया जाता है इसका मतलब यह होता है कि जिसने बयाना दिया है अब यह चीज वही खरीदेगा या लेगा इस बयाने की रकम पर भी जकात देनी होगी अगर किसी ने कोई चीज खरीदी और उसका कब्जा नहीं मिला तो खरीदने वाले पर उस माले तेजारत की जकात नहीं इसमें कब्जा शर्त है और बेचने वाले पर भी जकात नहीं इसलिए कि वह चीज बिक चुकी है। अब वह उसका मालिक नहीं रहा। लेकिन जब खरीदने वाले को कब्जा मिलेगा उस वक्त  वह खरीदार इस साल की भी जकात निकालेगा। जकात का सिर्फ मकसद यह है कि गरीब लोगों का फायदा पहुंचा कर उनकी जो भी मदद हो करें। इस्लाम मजहब में जो भी कानून कायदे बनाए गए हैं वह सिर्फ इसलिए हैं कि इंसान इंसान के काम आए और इंसानियत जिंदा रहे जकात का मसला भी इसीलिए जरूरी करार दिया गया कि अपने पड़ोसी रिश्तेदार और दूरदराज के अजीज लोगों की हर तरह से मदद होती रहे।इस लिए ज़ाकात को अहमियत दी गर्इ है।


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